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ग़ज़ल
देख हमारी दीद के कारन कैसा क़ाबिल-ए-दीद हुआ
एक सितारा बैठे बैठे ताबिश में ख़ुर्शीद हुआ
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
फ़ी-ज़माना है यही मस्लहत-ए-अक़्ल-ओ-शुऊर
दिल में ख़्वाहिश कोई उभरे तो दबा ली जाए
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
अल्लाह रे इज़्तिराब-ए-तमन्ना-ए-दीद-ए-यार
फ़ुर्सत में इक निगाह की सौ बार देखना
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
महव-ए-दीद-ए-चमन-ए-शौक़ है फिर दीदा-ए-शौक़
गुल-ए-शादाब वही बुलबुल-ए-शैदा है वही
ग़ुलाम भीक नैरंग
ग़ज़ल
सैंकड़ों मौजूद हैं मुश्ताक़-ए-दीद-ए-रू-ए-दोस्त
उन की महफ़िल में हुजूम-ए-‘आशिक़ाँ पहले से है
आ़रिफ़ देहल्वी
ग़ज़ल
कोई जब बा-दिल-ए-नाख़्वासता महफ़िल से उठता है
क़दम उठता तो है उस का मगर मुश्किल से उठता है
तलअत सिद्दीक़ी नह्टोरी
ग़ज़ल
हो रहा हूँ महव-ए-दीद-ए-रू-ए-जानाँ इन दिनों
क्यों न हूँ फिर सूरत-ए-आईना हैराँ इन दिनों