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ग़ज़ल
हुए रोने से मिरे दीदा-ए-बेदार सफ़ेद
बल्कि अश्कों ने किया रंग-ए-शब-ए-तार सफ़ेद
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
ख़्वाब लिपटे हैं 'अजब दीदा-ए-बेदार के साथ
नींद आती है मुझे सुब्ह के आसार के साथ
काशिफ़ हुसैन ग़ाएर
ग़ज़ल
हुआ है दीदा-ए-'बेदार' गुल-फ़िशाँ जब से
गिरा है तब से ये अब्र-ए-बहार आँखों से
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
क़ब्र में सोएँगे आराम से अब ब'अद-ए-फ़ना
आएगा ख़्वाब-ए-अदम दीदा-ए-बेदार के पास
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
यार को मालूम होता है हिज्र में सोया नहीं
ख़त लिखूँ गोया बयाज़-ए-दीदा-ए-बेदार पर