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ग़ज़ल
जब जलते पतंगों को देखा 'दीदार' तो ये मालूम हुआ
आग़ाज़-ए-मोहब्बत ठीक तो है अंजाम-ए-मोहब्बत ठीक नहीं
दीदार बस्तवी
ग़ज़ल
बुझती नहीं है तिश्नगी दीदार-ए-यार की
नज़रों से उन के लाख पिलाने के बअ'द भी
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
ग़ज़ल
बात करने से भी नफ़रत हो गई दिलदार को
वाह-रे इज़हार-ए-उल्फ़त वाह-रे तासीर-ए-इश्क़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
ज़ेर-ए-दीवार-ए-सनम क़ब्र में सोता हूँ फ़लक
क्यूँ न हो ताला-ए-बेदार पर अब नाज़ मुझे
यगाना चंगेज़ी
ग़ज़ल
राह का ख़ौफ़ न अंदेशा-ए-गुमराही है
रहनुमा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा-ए-सनम है देखो
मोहम्मद अब्दुल क़ादिर अदीब
ग़ज़ल
ज़र्रा देखा जो कभी मुत्तसिल-ए-महर-ए-फ़लक
मैं ने क़ुर्ब-ए-रुख़-ए-पुर-नूर-ए-सनम तिल समझा
अब्दुल मजीद ख़्वाजा शैदा
ग़ज़ल
शौक़ तौफ़-ए-हरम-ए-कू-ए-सनम का दिन रात
सूरत-ए-नक़्श-ए-क़दम ठोकरें खिलवाता है