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ग़ज़ल
चराग़-ए-मह सीं रौशन-तर है हुस्न-ए-बे-मिसाल उस का
कि चौथे चर्ख़ पर ख़ुर्शीद है अक्स-ए-जमाल उस का
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
दिखला दो नक़्श पा-ए-रसूल-ए-अमीन को
ता-मश्क़ सज्दा हो मिरे लौह-ए-जबीन को
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
लहजे की उदासी कम होगी बातों में खनक आ जाएगी
दो-रोज़ हमारे साथ रहो चेहरे पे चमक आ जाएगी
अंजुम बाराबंकवी
ग़ज़ल
बज़्म-ए-इम्काँ में कोई मुझ सा नज़र-बाज़ नहीं
ये जिगर देख कि इस पर भी मुझे नाज़ नहीं
बिशन दयाल शाद देहलवी
ग़ज़ल
दिल में जब आ के इश्क़ ने तेरे महल किया
सब दस्त-ओ-पा-ए-अक़्ल कूँ यक पल में शल किया