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ग़ज़ल
कुछ मोहब्बत में अजब शेव-ए-दिल-दार रहा
मुझ से इंकार रहा ग़ैर से इक़रार रहा
हिज्र नाज़िम अली ख़ान
ग़ज़ल
जाता है मिरे घर से दिल-दार ख़ुदा-हाफ़िज़
है ज़िंदगी अब मुश्किल बे-यार ख़ुदा-हाफ़िज़
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
मेरे अल्फ़ाज़ से आती है उस दिल-दार की ख़ुशबू
सुख़न-वर हूँ छुपा सकता नहीं मैं प्यार की ख़ुशबू
रवि शुक्ल
ग़ज़ल
किसी के गेसू-ए-पुर-पेच पर दिल-दार बैठे हैं
वो अब क्या जीत सकते हैं जो बाज़ी हार बैठे हैं
नवाब सैफ अली सय्याफ़
ग़ज़ल
ज़मीन-ए-कूचा-ए-दिल-दार ने क्या पाँव पकड़े हैं
मिली दीवानगान-ए-इश्क़ को ज़ंजीर मिट्टी की
क़ुर्बान अली सालिक बेग
ग़ज़ल
'मोहसिन'-एहसान मशक़्क़त की भी हद होती है
तुम तो मर जाओगे बार-ए-ग़म-ए-दिल-दार के साथ
मोहसिन एहसान
ग़ज़ल
सरा-ए-दहर में हम इस लिए ठहरे हैं दम भर को
कि राह-ए-ख़ाना-ए-दिल-दार उसी महफ़िल से निकलेगी