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ग़ज़ल
हम तो हैं फ़क़त दिल-ज़दा-ए-ज़ौक़-ए-तमाशा
रम हम से अबस करते हो ऐ ज़ोहरा-निगाहो!
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
ग़ज़ल
मैं दिल-ज़दा हूँ कि वो शोख़ ही कुछ ऐसा है
उसी के नाम लिखी हैं अदाएँ जैसी हों
मौलवी सय्यद मुमताज़ अली
ग़ज़ल
हम दिल-ज़दा न रखते थे तुम से ये चश्म-दाश्त
करते हो क़हर लुत्फ़ की जागा ग़ज़ब है क्या
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
'साज़' है दिल-ज़दा अब भी तिरे शे'रों के तुफ़ैल
हम तो समझे थे कि ऐ मीर ये आज़ार गया
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
जब इतने दिल-ज़दा ठहरे तो मान भी जाओ
कि उस के वा'दा-ए-फ़र्दा का हाल भी तो नहीं