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ग़ज़ल
मिरे जीव आरसी में ख़याल तुज मुख का सो दिस्ता है
करे ऊ ख़याल मुंज दिल में निशानी ज़र-फ़िशानी का
क़ुली क़ुतुब शाह
ग़ज़ल
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
दिस्ता है मुझ को यार का रुख़्सार-ए-गुल-इज़ार
तिस की ख़ुशी सूँ तब' को गुलज़ार कर रखूँ
अलीमुल्लाह
ग़ज़ल
हुआ है मंज़र-ए-चश्म-ए-नज़र मंज़ूर-ए-उश्शाक़ाँ
दर-ओ-दीवार सूँ दिस्ता निशान-ए-बे-निशाँ मेरा
अलीमुल्लाह
ग़ज़ल
नोक-ए-मिज़्गाँ जब हुई सीना-फ़गारों से दो-चार
पारा-हा-ए-दिल से गुल-दस्ता बना कर ले गई
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
मुद्दत गुज़री दूर से मैं ने एक सफ़ीना देखा था
अब तक ख़्वाब में आ कर शब भर दरिया मुझ को डसता है
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
ज़ुल्फ़ें छोड़ीं हैं कि जोड़ा उस ने छोड़ा साँप का
देखिए किस किस को डसता है ये जोड़ा साँप का