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ग़ज़ल
नाला-ए-मीर सवाद में हम तक दोशीं शब से नहीं आया
शायद शहर से उस ज़ालिम के आशिक़ वो बदनाम गया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
बज़्म-ए-दोशीं को करो याद कि इस का हर रिंद
रौनक़-ए-बार-गह-ए-पीर-ए-मुग़ाँ गुज़रा है
अब्दुल मजीद सालिक
ग़ज़ल
ख़्वाब-ए-दोशीं से मुसाफ़िर न कहीं जाग पड़ें
ज़ुल्म ने रोक लगा दी है हुदी-ख़्वानों पर
अब्दुर रऊफ़ उरूज
ग़ज़ल
तुझे दुश्मनों की ख़बर न थी मुझे दोस्तों का पता नहीं
तिरी दास्ताँ कोई और थी मिरा वाक़िआ कोई और है
सलीम कौसर
ग़ज़ल
वो दोस्ती तो ख़ैर अब नसीब-ए-दुश्मनाँ हुई
वो छोटी छोटी रंजिशों का लुत्फ़ भी चला गया
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
यहाँ वो कौन है जो इंतिख़ाब-ए-ग़म पे क़ादिर हो
जो मिल जाए वही ग़म दोस्तों का मुद्दआ' होगा
जौन एलिया
ग़ज़ल
कहाँ मेरे दिल की हसरत, कहाँ मेरी ना-रसाई
कहाँ तेरे गेसुओं का, तिरे दोश पर बिखरना