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ग़ज़ल
दमा-दम शो'बदे हम को दिखाता है कोई जल्वा
कहीं शैख़-ए-हरम हो कर कहीं पीर-ए-मुग़ाँ हो कर
हरी चंद अख़्तर
ग़ज़ल
हमारी मौत पर भी गर डरामा चलते रहना है
तो इस किरदार से बाहर महूरत से निकलते हैं
मुहम्मद राशिद अतहर
ग़ज़ल
कभी खोना कभी खो कर के पाना साथ चलता है
ये दुनिया है यहाँ पर आना जाना साथ चलता है
सफ़वत अली सफ़वत
ग़ज़ल
ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर
ग़ज़ल
मसलख़-ए-इश्क़ में खिंचती है ख़ुश-इक़बाल की खाल
भेड़ बकरी से है कम-क़द्र बद-आमाल की खाल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
न बच पाऊँगा मैं कि बीवियाँ दोनों तरफ़ से हैं
मिरे सर पर बरसती जूतियाँ दोनों तरफ़ से हैं
वहिद अंसारी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
यास-ओ-उमीद-ओ-शादी-ओ-ग़म ने धूम उठाई सीने में
ख़ूब मुझे है आज धमा-धम मार-कुटाई सीने में