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ग़ज़ल
किस किस को तुम भूल गए हो ग़ौर से देखो बादा-कशो
शीश-महल के रहने वाले पत्थर ढोने वाले हैं
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
बाद-अज़-वक़्त पशीमाँ हो कर ज़ख़्म नहीं भर सकते तुम
दामन के धब्बे अलबत्ता मिट सकते हैं धोने से
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
ग़ज़ल
कुल्फ़त-ए-दुनिया मिटे भी तो सख़ी के फ़ैज़ से
हाथ धोने को मिले बहता हुआ पानी मुझे