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ग़ज़ल
दुख़्तर-ए-रज़ को नहीं छेड़ते हैं मतवाले
हज़र उस फ़ाहिशा से करते हैं हुरमत वाले
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
क़ाबिल-ए-रश्क से वो दुख़्तर-ए-मुफ़्लिस जिस ने
तंग-दस्ती में भी इज़्ज़त को बचा रक्खा है
अब्बास दाना
ग़ज़ल
थूकता भी दुख़्तर-ए-रज़ पर नहीं मस्त-ए-अलस्त
जो कि है उस फ़ाहिशा पर ग़श वो फ़ाहिश और है
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
लाओ तो लहू आज पियूँ दुख़्तर-ए-रज़ का
ऐ मुहतसिबो देखो वो मुर्दार कहाँ है
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
दुख़्तर-ए-रज़ सच बता तेरी नज़र किस पर पड़ी
टट्टियों की आड़ में से किस को ताका कौन है
आग़ा अकबराबादी
ग़ज़ल
ख़ुश हो ऐ पीर-ए-मुग़ाँ 'जोश' हुआ नग़्मा-फ़रोश
मुज़्दा ऐ दुख़्तर-ए-रज़ रिंद-ए-क़दह-ख़्वार आया
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
दुख़्तर-ए-रज़ मिस्ल-ए-अफ़्लातूँ है जब तक ख़ुम में है
नश्शे में अपने से बाहर हों ये दानाई नहीं