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ग़ज़ल
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कुछ अपनी जो हुर्मत तुझे मंज़ूर हो ऐ शैख़
तू बहस न मय-ख़्वारों से चल दूर हो ऐ शैख़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
दूद-ए-दाग़-ए-सर-ए-सौदा-ज़दा करता है सियाह
ऐ जुनूँ हम कभी रखते हैं जो दस्तार सफ़ेद
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
इलाही हंगाम-ए-आमद-आमद ये किस क़यामत-ख़िराम का है
खिसक चले सेहन-ए-बोस्ताँ से तदरौ-ओ-ताऊस दुम दबा कर
बयान मेरठी
ग़ज़ल
अगर ग़ैरत है ज़िंदा तो वसाइल कीजिए पैदा
हमेशा दुम हिलाने से किसी को कुछ नहीं मिलता
इफ़्तिख़ार राग़िब
ग़ज़ल
नहीं मालूम किस शमसी फ़ज़ा के पास से गुज़रा
चमक बढ़ने लगी इम्कान के दुम-दार कौकब की
शाहिद माकुली
ग़ज़ल
हम किसी नेता के दुम-छल्ले नहीं बन कर रहे
ज़िंदगी हम ने गुज़ारी है बहुत ही शान से
हमीद दिलकश खंड्वी
ग़ज़ल
फिरे जो दुम पकड़ कर शाइ'रों की इस ज़माने में
यक़ीं मानो बनेगा शाइर-ए-आज़म वही आधा
वहिद अंसारी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
बढ़ा के रीश को अपनी भी जूँ दुम-ए-ताऊस
ये किस ख़याल पे भूला है अब्ला-ख़र वाइ'ज़