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ग़ज़ल
हसन नईम
ग़ज़ल
हैं कच्ची बस्ती के लोग सादा मगर वहाँ के मकीन तौबा
अदम-तवज्जोह की भेंट चढ़ के घरों में बैठे हसीन तौबा
असद रज़ा सहर
ग़ज़ल
शाहकार-ए-हुस्न-ए-फ़ितरत साज़िशों में बट गया
आईना टूटा तो चेहरा आइनों में बट गया
मुश्ताक़ आज़र फ़रीदी
ग़ज़ल
गिला-शिकवा कहाँ रहता है दिल हम-साज़ होता है
मोहब्बत में तो हर इक जुर्म नज़र-अंदाज़ होता है
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
ग़ज़ल
तासीर जज़्ब मस्तों की हर हर ग़ज़ल में है
ए'जाज़ बड़ में है तो करामत ज़टल में है
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
हाँ ख़ुद-आज़ार हैं दानिस्ता सज़ा चाहते हैं
ऐसी दुनिया से तो हम कर्ब-ओ-बला चाहते हैं