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ग़ज़ल
कितनी दिलकश है दिल-अफ़रोज़ है दुनिया-ए-दनी
अपनी आँखों से ज़रा हाथ हटा कर देखो
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
हम तो जब जानें कि काम आए मुसीबत में कोई
वर्ना यूँ कहने को दुनिया में हैं लाखों जाँ-निसार
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
तलाश करती है दुनिया उसी के नक़्श-ए-क़दम
वही जो भीड़ में सब से जुदा दिखाई दे
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
'परवीं' ग़लत है उन को समझना जुदा जुदा
हैं जिस्म-ओ-जाँ की तरह से दुनिया-ओ-दीं शरीक
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
हुस्न-ए-जानाँ की कशिश दुनिया में बाक़ी रह गई
बद-नसीबी से हमारी उड़ गई तासीर-ए-इश्क़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
ख़त-ए-तक़्दीर से बेहतर मैं समझूँ इस को दुनिया में
तू लिखवा लाए गर क़ासिद बुत-ए-बे-पीर से काग़ज़