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ग़ज़ल
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
हम तो क्या अहल-ए-नज़र को भी हुई है अक्सर
दुश्मन-ओ-दोस्त की पहचान बड़ी मुश्किल से
मश्कूर मुरादाबादी
ग़ज़ल
वर्ना क्यूँ आँख में आँसू हूँ ब-वक़्त-ए-दुश्नाम
दुश्मनो तुम भी मिरी ज़ीस्त के ख़्वाहाँ हो ज़रूर
सलाम मछली शहरी
ग़ज़ल
मीठी मीठी छेड़ कर बातें निराली प्यार की
ज़िक्र दुश्मन का वो बातों में उड़ाना याद है
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
तुझे दुश्मनों की ख़बर न थी मुझे दोस्तों का पता नहीं
तिरी दास्ताँ कोई और थी मिरा वाक़िआ कोई और है