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ग़ज़ल
तुम हो जहाँ के शायद मैं भी वहाँ रहा हूँ
कुछ तुम भी भूलते हो कुछ मैं भी भूलता हूँ
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
सुना है कीचड़ के सूखने पर हयात चोला बदल रही थी
शजर से नीचे उतर के ख़िल्क़त नहीफ़ क़दमों पे चल रही थी