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ग़ज़ल
वो किसी की झील आँखें वो मिरी जुनूँ-मिज़ाजी
कभी डूबना उभर कर कभी डूब कर उभरना
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
मुझे रोकेगा तू ऐ नाख़ुदा क्या ग़र्क़ होने से
कि जिन को डूबना हो डूब जाते हैं सफ़ीनों में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मैं समुंदरों का नसीब था मिरा डूबना भी अजीब था
मिरे दिल ने मुझ से बहुत कहा मैं उतर के पार नहीं गया