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ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
काश अब बुर्क़ा मुँह से उठा दे वर्ना फिर क्या हासिल है
आँख मुँदे पर उन ने गो दीदार को अपने आम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
तमाम इल्म ज़ीस्त का गुज़िश्तगाँ से ही हुआ
अमल गुज़िश्ता दौर का मिसाल में मिला मुझे
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
ग़म-ए-आशिक़ी से कह दो रह-ए-आम तक न पहुँचे
मुझे ख़ौफ़ है ये तोहमत तिरे नाम तक न पहुँचे
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
जौन एलिया
ग़ज़ल
निस्बत-ए-'इल्म है बहुत हाकिम-ए-वक़्त को अज़ीज़
उस ने तो कार-ए-जहल भी बे-उलमा नहीं किया
जौन एलिया
ग़ज़ल
ज़माना आया है बे-हिजाबी का आम दीदार-ए-यार होगा
सुकूत था पर्दा-दार जिस का वो राज़ अब आश्कार होगा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ऐ इश्क़ ये सब दुनिया वाले बे-कार की बातें करते हैं
पायल के ग़मों का इल्म नहीं झंकार की बातें करते हैं
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
मैं तो जब जानूँ कि भर दे साग़र-ए-हर-ख़ास-ओ-आम
यूँ तो जो आया वही पीर-ए-मुग़ाँ बनता गया