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कौन सा वस्फ़ कौन सी ख़ूबीहज़रत-ए-'नूह-नारवी' में नहीं
हुस्न को शक्लें दिखानी आ गईंशोख़ियाँ ले कर जवानी आ गईं
निखर आई निखार आई सँवर आई सँवार आईगुलों की ज़िंदगी ले कर गुलिस्ताँ में बहार आई
बहर-ए-ग़म में दिल का क़रीनालाखों मौजें एक सफ़ीना
अहल-ए-उल्फ़त से तने जाते हैंरोज़ रोज़ आप बने जाते हैं
इश्क़ में मुझ को बिगड़ कर अब सँवरना आ गयाहो गया नाकाम लेकिन काम करना आ गया
ये मेरे पास जो चुप-चाप आए बैठे हैंहज़ार फ़ित्ना-ए-महशर उठाए बैठे हैं
कूचा-ए-यार में कुछ दूर चले जाते हैंहम तबीअ'त से हैं मजबूर चले जाते हैं
कब अहल-ए-इश्क़ तुम्हारे थे इस क़दर गुस्ताख़उन्हें तुम्हीं ने किया छेड़ छेड़ कर गुस्ताख़
फ़रोग़-ए-हुस्न में क्या बे-सबात दिल का वजूदवो आफ़्ताब ये शबनम वो आग ये बारूद
दर्द-ए-फ़िराक़ दिल से जुदा हो तो जानिएइस का इलाज इस की दवा हो तो जानिए
कुछ दिनों क़ाएम रहे ऐ मह-जबीं इतनी नहींजिस नहीं का डर है वो तेरी नहीं इतनी नहीं
ना-रसा आहें मिरी औज-ए-मरातिब पा गईंदिल से निकलीं लब तक आईं आसमाँ पर छा गईं
सवाल-ए-वस्ल पे उज़्र-ए-विसाल कर बैठेवो किस ख़याल से ऐसा ख़याल कर बैठे
गुलज़ार में ये कहती है बुलबुल गुल-ए-तर सेदेखे कोई माशूक़ को आशिक़ की नज़र से
ये नया ज़ुल्म नई तर्ज़-ए-जफ़ा है कि नहींवो बुरा कह के ये कहते हैं सुना है कि नहीं
पहलू में चैन से दिल-ए-मुज़्तर न रह सकादम भर न रुक सका ये घड़ी भर न रह सका
कहता है कोई सुन के मिरी आह-ए-रसा कोपहचानते हैं हम भी ज़माने की हवा को
जाने को जाए फ़स्ल-ए-गुल आने को आए हर बरसहम ग़म-ज़दों के वास्ते जैसे चमन वैसे क़फ़स
किसी बे-दर्द को ज़ुल्म-ओ-सितम का शौक़ जब होगाये मेरा एक दिल लाखों दिलों में मुंतख़ब होगा
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