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ग़ज़ल
हज़रत-ए-नासेह गर आवें दीदा ओ दिल फ़र्श-ए-राह
कोई मुझ को ये तो समझा दो कि समझावेंगे क्या
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
आँखों से गर करे वो ज़ुल्फ़ों को टुक इशारा
आवें चले हज़ारों वहशी ग़ज़ाल बाँधे
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
सजन आवें तो पर्दे से निकल कर भार बैठूँगी
बहाना कर के मोतियाँ का पिरोने हार बैठूँगी
हाश्मी बीजापुरी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
वो मुंतज़िर कि आवें हम पुर-तपिश कि जावें
इस ढब की हर दो जानिब बे-इख़्तियारियाँ थीं
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
जो सुलूक अब दिल में आवें कर मुझे तक़दीर ने
दस्त ओ बाज़ू बाँध कर तेरे हवाले कर दिया
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
ग़ज़ल
اونو آویں تو پردے سے گھڑی بھر بھار بیٹھوں گی
بہانا کر کے موتیاں کے پروتے ہار بیٹھوں گی