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ग़ज़ल
थूकता भी दुख़्तर-ए-रज़ पर नहीं मस्त-ए-अलस्त
जो कि है उस फ़ाहिशा पर ग़श वो फ़ाहिश और है
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
मैं इक परकार सा सय्यार भी हूँ और साबित भी
जहाँ सारा मिरे क़दमों की पैमाइश में रहता है
अरशद जमाल सारिम
ग़ज़ल
झुक गया क़दमों पे तेरे फिर भी सर ऊँचा रहा
आँख पत्थर हो गई जल्वों की फ़रमाइश न की
मुज़फ़्फ़र वारसी
ग़ज़ल
किया आँखों को नज़्र उस की कहा दिल है सो वो बहला
हुआ हूँ सर्फ़-ए-फ़रमाइश कभी ये ला कभी वो ला