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ग़ज़ल
क़लंदर जुज़ दो हर्फ़-ए-ला-इलाह कुछ भी नहीं रखता
फ़क़ीह-ए-शहर क़ारूँ है लुग़त-हा-ए-हिजाज़ी का
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
फ़क़ीह-ए-शहर को समझो कि हम पकड़े गए नाहक़
शराबें सब उसी की थीं बस इक पैमाना मेरा था
अर्श सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
फ़क़ीह-ओ-शैख़ के ज़ेहनों में बुत होंगे ख़ुदाओं के
मैं इंसाँ हूँ मुझे तो सिर्फ़ इंसाँ याद आते हैं
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
जहान-ए-नौ जिसे महबूब की आँखों का हासिल हो
फ़क़ीह-ए-इश्क़ के फ़तवे की रू से वो सिकंदर है
शहज़ाद क़ैस
ग़ज़ल
वो फ़क़ीह-ए-कू-ए-बातिन है अदू-ए-दीन-ओ-मिल्लत
किसी ख़ौफ़-ए-दुनियवी से जो तराश दे फ़साना
माहिर-उल क़ादरी
ग़ज़ल
हिदायतों का है मोहताज नामा-बर की तरह
फ़क़ीह-ए-शहर तिलिस्म-ए-बयाँ के होते हुए
अख़्तर होशियारपुरी
ग़ज़ल
'शोरिश' मिरी नवा से ख़फ़ा है फ़क़ीह-ए-शहर
लेकिन जो कर रहा हूँ बजा कर रहा हूँ मैं