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ग़ज़ल
क़लंदर ख़ानक़ाह-ओ-मदरसा में मस्त है लेकिन
ये मस्ती फ़क़्र-ए-बू-बकर-ओ-अली लगती नहीं मुझ को
सय्यद अमीन अशरफ़
ग़ज़ल
खुल गए तो बू-ए-मा'नी हर तरफ़ उड़ती फिरी
बंद हो कर लफ़्ज़ 'बाक़र' नुत्क़ पर ताले हुए
सज्जाद बाक़र रिज़वी
ग़ज़ल
ज़फ़र अली ख़ाँ
ग़ज़ल
ग़म-ए-दिल को बहार-ए-बे-ख़िज़ाँ कहना ही पड़ता है
मोहब्बत को हयात-ए-जावेदाँ कहना ही पड़ता है
सईद शहीदी
ग़ज़ल
ग़म-ए-दिल को बहार-ए-बे-ख़िज़ाँ कहना ही पड़ता है
मोहब्बत को हयात-ए-जाविदाँ कहना ही पड़ता है
सईद शहीदी
ग़ज़ल
ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ मोहब्बत का कारोबार चले
मज़ा तो जब है कि हर लम्हा ज़िक्र-ए-यार चले
मैकश नागपुरी
ग़ज़ल
ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ सब ने अपने ए'तिबार चुन लिए
ख़िरद ने फूल ले लिए जुनूँ ने ख़ार चुन लिए
अबरार किरतपुरी
ग़ज़ल
ब-क़द्र-ए-हौसला कोई कहीं कोई कहीं तक है
सफ़र में राह-ओ-मंज़िल का तअ'य्युन भी यहीं तक है