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ग़ज़ल
है सौ अदाओं से उर्यां फ़रेब-ए-रंग-ए-अना
बरहना होती है लेकिन हिजाब-ए-ख़्वाब के साथ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
ये वक़्त का है तक़ाज़ा कि है फ़रेब-ए-नज़र
कि बेटा बाप के क़द से बड़ा दिखाई दे
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
फ़रेब-ए-वा'दा-ए-फ़र्दा बहुत ही 'आरज़ी शय है
रहेंगे 'उम्र भर इस दिल पे चोटों के निशाँ बाक़ी
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
ग़ज़ल
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
ग़ज़ल
अल्लाह रे फ़रेब-ए-नज़र-ए-चश्म-ए-फ़ुसूँ-साज़
बंदा है हर इक शैख़ हर इक बरहमन उन का
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
मुसलसल था फ़रेब-ए-ख़ाब-गाह-ए-आलम-ए-फ़ानी
मगर सोता रहा चलती रही उम्र-ए-रवाँ मेरी
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
ये जब्र-ओ-क़दर-ए-मशिय्यत ये क़ुव्वत-ए-फ़ितरत
ब-क़द्र-ए-हौसला-ए-दिल नहीं तो कुछ भी नहीं