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ग़ज़ल
शब-ए-फ़ुर्क़त का जागा हूँ फ़रिश्तो अब तो सोने दो
कभी फ़ुर्सत में कर लेना हिसाब आहिस्ता आहिस्ता
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
फ़रिश्तो तुम कहाँ तक नामा-ए-आमाल देखोगे
चलो ये नेकियाँ गिन लो कि गठरी खोल दी हम ने
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
बशर के ही मुक़द्दर में लिखीं क्या हिजरतें सारी
फ़रिश्तो तुम कभी नक़्ल-ए-मकानी क्यों नहीं करते
अब्दुल मन्नान समदी
ग़ज़ल
रज़ी आबिदी
ग़ज़ल
मीर मोहम्मद सुल्तान अाक़िल
ग़ज़ल
ज़रा ठहरो फ़रिश्तो कुछ तो याँ आराम लेने दो
उठा कर आ रहा हूँ सख़्तियाँ हस्ती की मंज़िल की