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ग़ज़ल
तुम्हें फ़रियाद-रस कहते हैं मैं फ़रियाद करता हूँ
तुम्हें आख़िर बताओ फिर ये कोशिश राएगाँ क्यूँ हो
तालिब बाग़पती
ग़ज़ल
महशर में उस बेदर्द से गर पूछ-गछ ने दाद की
आया हूँ मैं फ़रियाद को फ़रियाद सुन फ़रियाद-रस
नूह नारवी
ग़ज़ल
शाम-ए-ग़ुर्बत हम से मजरूहों की है फ़रियाद-रस
ज़ुल्फ़ की छाती फटी है सुनते ही शाने की अर्ज़
वली उज़लत
ग़ज़ल
जब नहीं होता कोई ग़म का मिरी फ़रियाद-रस
दर्द-ए-दिल अश'आर के साँचों में ढलता जाए है
साहिर भोपाली
ग़ज़ल
ये मज़लूम-ए-मोहब्बत दाद-रस हरगिज़ न पावेगा
करे दिल-दाद और फ़रियाद जितना उस का जी चाहे