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ग़ज़ल
झुक गया क़दमों पे तेरे फिर भी सर ऊँचा रहा
आँख पत्थर हो गई जल्वों की फ़रमाइश न की
मुज़फ़्फ़र वारसी
ग़ज़ल
किया आँखों को नज़्र उस की कहा दिल है सो वो बहला
हुआ हूँ सर्फ़-ए-फ़रमाइश कभी ये ला कभी वो ला
फ़त्तावत औरंगाबादी
ग़ज़ल
ख़फ़ा हैं इस लिए वो हम से फ़रमाइश नहीं करते
सो हम भी धूप और साए की पैमाइश नहीं करते