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ग़ज़ल
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
कैसे बच पाओगे फ़रमान ग़म-ए-हिज्राँ से
ये मोहब्बत का है दस्तूर बड़ी मुश्किल है
फ़रमान ज़ियाई सिरोजनी
ग़ज़ल
तुम्हारी बज़्म में 'फ़रमान' की तो क्या हक़ीक़त है
जो आ जाए वो अपनी ज़ात से बेगाना हो जाए
फ़रमान ज़ियाई सिरोजनी
ग़ज़ल
क़रार-ओ-बे-क़रारी लाज़िम-ओ-मलज़ूम हैं दोनों
न 'फ़रमान' इस पे हर्फ़ आए न उस पर कोई बार आए
फ़रमान ज़ियाई सिरोजनी
ग़ज़ल
मेरी नज़र नहीं निगह-ए-शैख़-ओ-बरहमन
पस्ती नहीं है 'अर्श की रिफ़अत है ज़िंदगी
माया खन्ना राजे बरेलवी
ग़ज़ल
सर्कशान-ए-इश्क़ फिर आमादा-ए-फ़रियाद हैं
फिर कोई फ़रमान-ए-क़त्ल-ए-आम जारी कीजिए
मिद्हत-उल-अख़्तर
ग़ज़ल
'इंशा' करूँ जो पैरवी-ए-शैख़-ओ-बरहमन
मैं भी उन्हों की तरह से जूँ गुमरहाँ रहूँ
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
न हो मायूस तुम हालात से दैर-ओ-हरम वालो
कि अब तंज़ीम-ए-शैख़-ओ-बरहमन कुछ और कहती है
मुस्लिम अंसारी
ग़ज़ल
इश्क़ में उस बुत के रहबान-ओ-शुयूख़-ओ-बरहमन
हैं ये सब के सब मुक़य्यद रिश्ता-ए-ज़ुन्नार के