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ग़ज़ल
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
चलो गुमराहियों की रुई भर लो अपने कानों में
सुना है शैख़-साहब आज कुछ फ़रमाने वाले हैं
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
दिल तलब मुझ से किया मैं ने कहा हाज़िर नहीं
ये ग़ज़ब देखो मचल कर पाँव फैलाने लगे
रंगीन सआदत यार ख़ाँ
ग़ज़ल
रूदाद-ए-अलम उन से जो क़ासिद ने बयाँ की
फ़रमाने लगे हँस के ये अफ़्साना लगे है
अब्दुल रहमान ख़ान वस्फ़ी बहराईची
ग़ज़ल
हमारी महफ़िलों में बे-हिजाब आने से क्या होगा
नहीं जब होश में हम जल्वा फ़रमाने से क्या होगा
इम्तियाज़ अली अर्शी
ग़ज़ल
लम्हा लम्हा है कि है क़ाफ़िला-ए-मंज़िल-ए-नूर
सरहद-ए-शब में भी फ़रमान-ए-सहर है जारी
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
चटख़ रहे हैं दिलों के साग़र मगर ये फ़रमान-ए-चारागर है
न कोई चश्म-ए-पुर-आब छलके न कोई जाम-ए-शराब टूटे
ज़ाहिदा ज़ैदी
ग़ज़ल
उन्हें भी देख आएँ इक नज़र मुझ से फ़रमाएँ
उन्हीं पर छोड़ता हूँ जो मुझे समझाने आए हैं
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
ग़ज़ल
सर्कशान-ए-इश्क़ फिर आमादा-ए-फ़रियाद हैं
फिर कोई फ़रमान-ए-क़त्ल-ए-आम जारी कीजिए