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ग़ज़ल
विरासत में भला लेगी भी क्या नस्ल-ए-फ़र-ओ-माया
ग़ज़ल में भी सियासत है ज़रूरत से ज़ियादा ही
आदित्य श्रीवास्तव शफ़क़
ग़ज़ल
टाँके क्या जैब के फिर बाद-ए-रफ़ू टूट गए
हो के नाख़ुन कभी सीने में फ़रो टूट गए
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
न जल के ख़ाक हो जब तक कि मिस्ल-ए-परवाना
हो तैश दिल का हमारे फ़रो तो क्यूँ-कर हो
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
सुकूत-ए-लब का वो सबब हैं सिसकियाँ वो हिचकियाँ
निगाह-ए-इश्क़ से फ़रो वो हादिसा नहीं हुआ
अबू लेवीज़ा अली
ग़ज़ल
नियाज़-ओ-अर्ज़-ए-सुख़न से कहाँ फ़रो होवे
ग़ुरूर-ओ-नाज़ कि है कज-कुलाहियों जैसा
आफ़ताब इक़बाल शमीम
ग़ज़ल
सुकूत-ए-लब का वो सबब हैं सिसकियाँ वो हिचकियाँ
निगाह-ए-इश्क़ से फ़रो वो हादिसा नहीं हुआ
अबू लेवीज़ा अली
ग़ज़ल
गए थे रौंदने दिल को लिए बैठे हैं तलवों को
फ़रो रग रग में नश्तर थे निहाँ नस नस में पैकाँ था
बयान मेरठी
ग़ज़ल
अगर आ के ग़ुस्सा नहीं रहा तो लगी थी आग कि बुझ गई
जो हसद का जोश फ़रो हुआ तो ये ज़हर चढ़ के उतर गया
नज़्म तबातबाई
ग़ज़ल
ज़ाहिद तिरे कमाल पे मारें हैं पुश्त-ए-पा
लाए फ़रो सर अपना जो पीर-ए-मुग़ाँ की ओर
मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार
ग़ज़ल
मैं हुआ ब-ख़ाक-ए-सियह-फ़रो तिरे कूचे में ब-सद-आरज़ू
रहा शर्मगीं ही हमेशा तू तिरी अब तलक न हया गई