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ग़ज़ल
दिल से मजबूर भी हम साहिब-ए-पिंदार भी हम
आस्ताँ से तिरे कतरा के गुज़र आते हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
पारसा हम-राह ले जाएँगे पिंदार-ए-अमल
हम तो अपने साथ उन की ख़ाक-ए-पा ले जाएँगे
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
फ़र्त-ए-सोज़-ए-उल्फ़त में देख कर सकूँ दिल का
बिजलियाँ मचलती हैं बादलों के महशर में
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
करता हूँ 'वहशत' उन से अर्ज़-ए-नियाज़-ए-पिंहाँ
इस काम के तरीक़े दिल ने बता दिए हैं
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
'अनीस' एहसास-ए-दर्द-ओ-फ़र्त-ए-मायूसी को क्या कहिए
कि अब आँसू भी मेरी आँख से कमतर निकलते हैं
सय्यद अनीसुद्दीन अहमद रीज़वी अमरोहवी
ग़ज़ल
ये फ़र्त-ए-गिर्या-ओ-ज़ारी का है असर 'मंशा'
ज़मीं मकानों की गीली है नम हैं दीवारें
मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा
ग़ज़ल
फ़र्त-ए-काहीदगी-ए-दर्द से यारब अब तो
सब के सब हो गए हैं पीर जवान-ए-देहली
तफ़ज़्ज़ुल हुसैन ख़ान कौकब देहलवी
ग़ज़ल
बे-ज़बाँ ज़ख़्मों को फ़र्त-ख़्वाहिशात-ए-ज़ीस्त को
जो न समझा ग़ैर-ज़िम्मेदार वो समझा गया
हसीर नूरी
ग़ज़ल
फ़र्त-ए-हुजूम-ए-ख़ल्क़ से हों बंद रास्ते
वो रश्क-ए-यूसुफ़ आए जो बाज़ार की तरफ़
राजा गिरधारी प्रसाद बाक़ी
ग़ज़ल
मक़्दूर नहीं हम को फ़र्त-ए-दम-ए-जौलाँ पर
कर देंगे निछावर जाँ हम 'इश्वा-ए-सामाँ पर
डॉ. हबीबुर्रहमान
ग़ज़ल
वही पहली सी अर्ज़ानी सर-ए-बाज़ार-ए-पिंदार
नज़र आए तो हम क़ीमत बढ़ाएँगे नहीं क्या