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ग़ज़ल
न मैं दीवाना फ़रज़ाना न मैं परवाना ऐ 'अर्पित'
तअज्जुब है मुझे क्यूँकर मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ
अर्पित शर्मा अर्पित
ग़ज़ल
दिल का है क़स्द तिरी बज़्म में अड़ कर जाऊँ
क्या ही बे-पर की उड़ाता है ये परवाना-ए-इश्क़
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
ज़रा ऐ नासेह-ए-फ़र्ज़ाना चल कर सुन तो दो बातें
न होगा फिर भी तू 'मज्ज़ूब' का दीवाना देखूँगा
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
वाइज़ ने जो फ़रमाया था मेहराब-ए-हरम में
रिंदों से वो क्यूँ साक़ी-ए-मय-ख़ाना कहा जाए
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ग़ज़ल
मजमा-ए-बैत-उल-हरम की धूम सुनते थे मगर
जा के जब देखा तो उन में कोई फ़रज़ाना न था
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
उस हुस्न का शैदा हूँ उस हुस्न का दीवाना
हर गुल है जहाँ बुलबुल हर शम्अ' है परवाना
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
उस हुस्न का शैदा हूँ उस हुस्न का दीवाना
हर गुल है जहाँ बुलबुल हर शम्अ' है परवाना