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ग़ज़ल
ये मुबाहिसे ये मुनाज़रे ये फ़साद-ए-ख़ल्क़ ये इंतिशार
जिसे दीन कहते हैं दीन-दार मिरी रूह पर वही घाव था
शमीम अब्बास
ग़ज़ल
शुक्र-ए-ख़ुदा कि ज़ुल्म से मा'ज़ूर है फ़लक
बर्तानिया है ख़ल्क़ की ग़म-ख़्वार आज-कल
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
यार है ख़ंजर-ब-कफ़ और जाँ-निसारों का हुजूम
हाए ये किस जुर्म में ख़ल्क़-ए-ख़ुदा पकड़ी गई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
फ़साद-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र हासिल-ए-तमाशा देख
सवार-ए-मरकब-ए-दुनिया ग़ुबार-ए-दुनिया देख
सय्यद अमीन अशरफ़
ग़ज़ल
मुज़फ्फ़र अहमद मुज़फ्फ़र
ग़ज़ल
फ़र्त-ए-हुजूम-ए-ख़ल्क़ से हों बंद रास्ते
वो रश्क-ए-यूसुफ़ आए जो बाज़ार की तरफ़