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ग़ज़ल
तेरे ख़िराम-ए-नाज़ से आज वहाँ चमन खिले
फ़सलें बहार की जहाँ ख़ाक उड़ा के रह गईं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
दानिश नक़वी
ग़ज़ल
तमाम फ़सलें उजड़ चुकी हैं न हल बचा है न बैल बाक़ी
किसान गिरवी रखा हुआ है लगान पानी में बह रहा है
शकील आज़मी
ग़ज़ल
मेरी ग़ज़लें उस के साथ बिताए वक़्त का हासिल हैं
वैसी फ़स्लें उग आती हैं जैसी बारिश हो जाए
अहमद अज़ीम
ग़ज़ल
इक तस्वीर मुकम्मल कर के उन आँखों से डरता हूँ
फ़स्लें पक जाने पर जैसे दहशत इक चिंगारी की
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
ग़ज़ल
भूक से रिश्ता टूट गया तो हम बेहिस हो जाएँगे
अब के जब भी क़हत पड़े तो फ़सलें पैदा मत करना