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ग़ज़ल
दिल ने वफ़ा के नाम पर कार-ए-वफ़ा नहीं किया
ख़ुद को हलाक कर लिया ख़ुद को फ़िदा नहीं किया
जौन एलिया
ग़ज़ल
दिल ओ जाँ फ़िदा-ए-राहे कभी आ के देख हमदम
सर-ए-कू-ए-दिल-फ़िगाराँ शब-ए-आरज़ू का आलम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
क्यूँ ऐसे नबी पर न फ़िदा हूँ कि जो फ़रमाए
अच्छे तो सभी के हैं बुरा मेरे लिए है
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
उस ने तलवारें लगाईं ऐसे कुछ अंदाज़ से
दिल का हर अरमाँ फ़िदा-ए-दस्त-ए-क़ातिल हो गया
अबुल कलाम आज़ाद
ग़ज़ल
तिरे हुस्न पे फ़िदा हूँ तिरे इश्क़ में 'फ़ना' हूँ
मुझे तेरी आरज़ू है मिरी ख़ल्वतों में आ जा
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
शबाब आया किसी बुत पर फ़िदा होने का वक़्त आया
मिरी दुनिया में बंदे के ख़ुदा होने का वक़्त आया