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ग़ज़ल
ग़म्ज़ा-ओ-नाज़-ओ-अदा शोख़ी-ओ-बेबाकी-ओ-हुस्न
एक ही जुर्म-ए-गुनह में हुए क़ातिल दो-चार
अहमद हसन फ़िदा
ग़ज़ल
है नाज़-ए-मुफ़्लिसाँ ज़र-ए-अज़-दस्त-रफ़्ता पर
हूँ गुल-फ़रोश-ए-शोख़ी-ए-दाग़-ए-कोहन हुनूज़
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
चुपके चुपके मुझ को रोते देख पाता है अगर
हँस के करता है बयान-ए-शोख़ी-ए-गुफ़्तार-ए-दोस्त
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
शब वो बोले रुख़-ए-रौशन से हटा कर ज़ुल्फ़ें
लो 'फ़िदा' सुब्ह हुई अब हमें जाने दीजे