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ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
नूह नारवी
ग़ज़ल
हुस्न-ए-बुताँ में शान-ए-इलाही है क्या कहूँ
बैठे न बुत-कदे में फ़िदाई तो क्या करे
जमीला ख़ुदा बख़्श
ग़ज़ल
नूह नारवी
ग़ज़ल
कहने को है सारा जहाँ सच्चे फ़िदाई हैं कहाँ
दस में न निकलेगा कोई दस लाख में निकलेंगे दस
नूह नारवी
ग़ज़ल
शाद फ़िदाई देहलवी
ग़ज़ल
ख़ुद को मुम्ताज़ बनाने की दिली-ख़्वाहिश में
दुश्मन-ए-जाँ से मिली मेरी अना साज़िश में
राही फ़िदाई
ग़ज़ल
जाता रहा क़ल्ब से सारी ख़ुदाई का इश्क़
क़ाबिल-ए-तारीफ़ है तेरे फ़िदाई का इश्क़