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ग़ज़ल
उसे दुनिया की सौ फ़िक्रें हमें इक रंग-ए-नादारी
कहीं मुनइ'म की दौलत से हमारी मुफ़्लिसी अच्छी
हफ़ीज़ जौनपुरी
ग़ज़ल
सैकड़ों फ़िक्रें हैं तुम को आक़िलो
तुम से तो 'मज्ज़ूब' ही बेहतर रहा
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
सिर्फ़ माहौल से फ़िक्रें नहीं बदला करतीं
दोस्तों का भी तबीअ'त पे असर पड़ता है
मोहसिन आफ़ताब केलापुरी
ग़ज़ल
धीरेंद्र सिंह फ़य्याज़
ग़ज़ल
आने वाले दिन की फ़िक्रें ख़्वाबों को डस लेती हैं
नींद से जलती आँखों को बे-मंज़र करना पड़ता है