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ग़ज़ल
मैं जो दिल से यूँ न पढ़ता तो मैं फ़र्स्ट भी न आता
न तो कोई तोहफ़ा देता न गले में हार होता
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
ग़ज़ल
आ गया गर वस्ल की शब भी कहीं ज़िक्र-ए-फ़िराक़
वो तिरा रो रो के मुझ को भी रुलाना याद है