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ग़ज़ल
क्या कहूँ उन की निगाह-ए-फ़ित्ना-ए-ज़ा क्या कह गई
लब तक आते आते दिल की बात दिल में रह गई
डॉ. नरेश
ग़ज़ल
फ़ित्ना-ज़ा फ़िक्र हर इक दिल से निकाल अच्छा है
आए गर हुस्न-ए-ख़याल उस को सँभाल अच्छा है
नज़र लखनवी
ग़ज़ल
फ़ित्ना-ज़ा वहशत-फ़ज़ा दाम-ए-क़ज़ा होते गए
जिस क़दर बढ़ते गए गेसू बला होते गए
मोहम्मद बाक़र शम्स
ग़ज़ल
वो नज़र-शोख़-ओ-फ़ित्ना-ज़ा ही सही
क्यूँ मिरे हाल-ए-ज़ार पर न हुई
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
मेरे सुकूत में निहाँ है मिरे दिल की दास्ताँ
झुक गई चश्म-ए-फ़ित्ना-ज़ा डूब गई हिजाब में
असर सहबाई
ग़ज़ल
ख़ुमार-आलूदा आँखें सुर्ख़ चेहरा मुंतशिर ज़ुल्फ़ें
वो क्या जागे कि फ़ितरत के नुक़ूश-ए-फ़ित्ना-ज़ा जागे
डॉ. फ़ौक़ करीमी
ग़ज़ल
हिर फिर के उन की आँख 'अदू से लड़े न क्यूँ
फ़ित्ना को करती है निगह-ए-फ़ित्ना-ज़ा पसंद
बेख़ुद देहलवी
ग़ज़ल
है तो गर्दिश चर्ख़ की भी फ़ित्ना-अंगेज़ी में ताक़
तेरी चश्म-ए-फ़ित्ना-ज़ा की लेक गर्दिश और है
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
है नज़र-अंदाज़ कोई कोई मंज़ूर-ए-नज़र
देखना उस बुत की चश्म-ए-फ़ित्ना-ज़ा के जोड़-तोड़
हबीब मूसवी
ग़ज़ल
जब गिला आशोब-पर्दाज़ों का उस बुत से किया
बोल उठा शोख़ी से चश्म-ए-फ़ित्ना-ज़ा थी मैं न था
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
जो चलता हूँ फ़लक से ख़ूँ के फ़व्वारे बरसते हैं
जो रुकता हूँ समूम-ए-फ़ित्ना-ज़ा भी आ ही जाती है
सय्यद अमीन अशरफ़
ग़ज़ल
क़त्ल-गाह-ए-अरमाँ है जिस की महफ़िल-ए-इशरत
वो निगार-ए-फ़ित्ना-ज़ा पैकर-ए-वफ़ा सा है