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ग़ज़ल
न पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने की
नशेमन सैकड़ों मैं ने बना कर फूँक डाले हैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
किसी ऐसे शरर से फूँक अपने ख़िर्मन-ए-दिल को
कि ख़ुर्शीद-ए-क़यामत भी हो तेरे ख़ोशा-चीनों में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अब तुझ से किस मुँह से कह दें सात समुंदर पार न जा
बीच की इक दीवार भी हम तो फाँद न पाए ढा न सके
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
फूँक दे ऐ ग़ैरत-ए-सोज़-ए-मोहब्बत फूँक दे
अब समझती हैं वो नज़रें रहम के क़ाबिल मुझे