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ग़ज़ल
सुब्ह तक हम रात का ज़ाद-ए-सफ़र हो जाएँगे
तुझ से हम-आग़ोश हो कर मुन्तशर हो जाएँगे
फ़ुज़ैल जाफ़री
ग़ज़ल
चमकते चाँद से चेहरों के मंज़र से निकल आए
ख़ुदा हाफ़िज़ कहा बोसा लिया घर से निकल आए
फ़ुज़ैल जाफ़री
ग़ज़ल
कोई मंज़िल आख़िरी मंज़िल नहीं होती 'फ़ुज़ैल'
ज़िंदगी भी है मिसाल-ए-मौज-ए-दरिया राह-रौ
फ़ुज़ैल जाफ़री
ग़ज़ल
सर-ए-सहरा-ए-दुनिया फूल यूँ ही तो नहीं खिलते
दिलों को जीतना पड़ता है तोहफ़े में नहीं मलते
फ़ुज़ैल जाफ़री
ग़ज़ल
मैं बाज़ आया न लड़ने से हार कर भी 'फ़ुज़ैल'
मिरे ख़ुदा की हैं मुझ पर इनायतें क्या क्या
फ़ुज़ैल जाफ़री
ग़ज़ल
वक़्त मासूम-ओ-जरी रूहों के दरपय है 'फ़ुज़ैल'
ज़िंदा जब तक हैं सर-ए-दार समझिए हम को
फ़ुज़ैल जाफ़री
ग़ज़ल
जुड़ी हुई है हर इक शख़्स की 'फ़ुज़ैल' यहाँ
ग़रज़ किसी न किसी साहब-ए-निसाब के साथ