aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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गुज़रे जो अपने यारों की सोहबत में चार दिनऐसा लगा बसर हुए जन्नत में चार दिन
ज़ख़्म खाते हैं और मुस्कुराते हैं हमहौसला अपना ख़ुद आज़माते हैं हम
चाँदनी-रात में अंधेरा थाइस तरह बेबसी ने घेरा था
इतना एहसान तो हम पर वो ख़ुदारा करतेअपने हाथों से जिगर चाक हमारा करते
आह भी हर्फ़-ए-दुआ हो जैसेइक दुखी दिल की सदा हो जैसे
हर मुलाक़ात में लगते हैं वो बेगाने सेफ़ाएदा क्या है भला ऐसों के याराने से
जब कभी ज़िक्र यार का आयाएक झोंका बहार का आया
न सोचना कि ज़माने से डर गए हम भीतिरी तलाश में ग़ैरों के घर गए हम भी
जीना कब तक मुहाल होगाआख़िर इक दिन विसाल होगा
सूना सूना दिल का मुझे नगर लगता हैअपने साए से भी आज तो डर लगता है
मौत भी मेरी दस्तरस में नहींऔर जीना भी अपने बस में नहीं
इक ज़रा तुम से शनासाई हुईशहर-भर में मेरी रुस्वाई हुई
कोई शिकवा तो ज़ेर-ए-लब होगाकुछ ख़मोशी का भी सबब होगा
शबाब आ गया उस पर शबाब से पहलेदिखाई दी मुझे ता'बीर ख़्वाब से पहले
मुमकिन है शब-ए-हिज्र दुआ का न असर होहै रात वो क्या रात कि जिस की न सहर हो
सर-ए-राहे कभी-कभार सहीरस-भरी इक निगाह-ए-यार सही
हम ही ज़र्रे रुस्वाई सेक्या शिकवा हरजाई से
जिन्हें हम भूलना चाहें वो अक्सर याद आते हैंबुरा हो इस मोहब्बत का वो क्यूँकर याद आते हैं
प्रेम के हम गीत गा कर क्या करेंगेनेह के मन-मीत पा कर क्या करेंगे
दोस्त बन कर आए कोई और गले हँस कर लगेएक अर्सा हो गया है पीठ में ख़ंजर लगे
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