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ग़ज़ल
तू जो इस दुनिया की ख़ातिर अपना-आप गँवाता है
ऐ दिल-ए-मन ऐ मेरे मुसाफ़िर काम है ये नादानों का
ऐन ताबिश
ग़ज़ल
कौन सुनेगा तेरे दुख को हरी हरी के किर्तन में
कह कर क्यों तू अपनी बात गँवाता है इस मंदिर में
कुमार पाशी
ग़ज़ल
ख़ुदा नमाज़ें दु'आएँ ये चिल्ले नज़्र-ओ-नियाज़
मैं ए'तिबार गँवाता रहा मोहब्बत में