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ग़ज़ल
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं
जहाँ बजते हैं नक़्क़ारे वहीं मातम भी होते हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
फ़रंगी शीशागर के फ़न से पत्थर हो गए पानी
मिरी इक्सीर ने शीशे को बख़्शी सख़्ती-ए-ख़ारा