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ग़ज़ल
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
तेरे चेहरे पे जो रौनक़ है मिरे इश्क़ से है
सिर्फ़ ग़ाज़े से नहीं नूर ये आने वाला
मुसव्विर फ़िरोज़पुरी
ग़ज़ल
शहर के मेले में यूँ तो गुल-रुख़ों की भीड़ थी
इन में चेहरे थे मगर कम और थे ग़ाज़े बहुत
शबाब ललित
ग़ज़ल
ज़िंदगी के गुलसिताँ में रो पड़ी आ कर 'बहार'
आँसुओं को फिर लगाया उस ने ग़ाज़े की तरह
बहारुन्निसा बहार
ग़ज़ल
आँखों में बस गए हैं कुछ ख़्वाब फूल जैसे
फिर क्या सबब है मेरी शामें नहीं महकतीं
ख़लीक़ुज़्ज़माँ नुसरत
ग़ज़ल
ग़म अगरचे जाँ-गुसिल है प कहाँ बचें कि दिल है
ग़म-ए-इश्क़ गर न होता ग़म-ए-रोज़गार होता