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ग़ज़ल
हम ठहरे आवारा पंछी सैर गगन की करते हैं
जान के हम को क्या करना है कौन है कितने पानी में
विलास पंडित मुसाफ़िर
ग़ज़ल
नील-गगन में तैर रहा है उजला उजला पूरा चाँद
माँ की लोरी सा बच्चे के दूध कटोरे जैसा चाँद
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
इतना गहरा रंग कहाँ था रात के मैले आँचल का
ये किस ने रो रो के गगन में अपना काजल घोल दिया
शकेब जलाली
ग़ज़ल
होंटों से जो बात हुई वो नील-गगन तक जा पहुँची
आँखों ने जो लिक्खा दिल पर अक्षर अक्षर याद रहा
कुंवर बेचैन
ग़ज़ल
नील-गगन पर जिस का सिंघासन वो है जग का पालनहार
पागल ख़ुद को दाता समझे सपनों के संसारों में