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ग़ज़ल
ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
ग़लत है जज़्ब-ए-दिल का शिकवा देखो जुर्म किस का है
न खींचो गर तुम अपने को कशाकश दरमियाँ क्यूँ हो
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
किस वास्ते लिक्खा है हथेली पे मिरा नाम
मैं हर्फ़-ए-ग़लत हूँ तो मिटा क्यूँ नहीं देते
हसरत जयपुरी
ग़ज़ल
इक़बाल अज़ीम
ग़ज़ल
आमिर अमीर
ग़ज़ल
कहा जो हाल-ए-दिल अपना तो उस ने हँस हँस कर
कहा ''ग़लत है ये बातें जो तुम बनाते हो''