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ग़ज़ल
हम को ख़याल-ए-ख़िदमत-ए-अह्ल-ए-जहाँ तो है
ताक़त नहीं है पाँव में मुँह में ज़बाँ तो है
मुसव्विर लखनवी
ग़ज़ल
क्या ख़बर थी मुन्हरिफ़ अहल-ए-जहाँ हो जाएँगे
होते होते मेहरबाँ ना-मेहरबाँ हो जाएँगे
दानिश अलीगढ़ी
ग़ज़ल
नहीं मा'लूम पाएँगे सुकूँ अहल-ए-जहाँ कब तक
ख़ुदा जाने रहेगा इस ज़मीं पर आसमाँ कब तक
बिस्मिल सईदी
ग़ज़ल
बख़्शी हैं हम को इश्क़ ने वो जुरअतें 'मजाज़'
डरते नहीं सियासत-ए-अहल-ए-जहाँ से हम