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ग़ज़ल
मक़्तल-ए-इश्क़ में हम रोज़-ए-अज़ल से यारो
बिस्मिल-ए-ग़मज़ा-ए-ख़ूँ-ख़्वार हैं किन के उन के
मोहम्मद अमान निसार
ग़ज़ल
चश्म-ए-खूँ-ख़्वार अबरू-ए-ख़मदार दोनों एक हैं
हैं जुदा लेकिन ब-वक़्त-ए-कार दोनों एक हैं
जोशिश अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
पान की सुर्ख़ी नहीं लब पर बुत-ए-ख़ूँ-ख़्वार के
लग गया है ख़ून-ए-आशिक़ मुँह को इस तलवार के
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
खिचे अबरू चढ़ी चितवन ग़ज़ब बदले हुए तेवर
बशक्ल-ए-ख़ंजर-ए-खूँ-ख़्वार 'आशिक़ की क़ज़ा तुम हो
प्यारे लाल रौनक़ देहलवी
ग़ज़ल
उस के लिए भी ग़म-ज़ा-ए-नाज़-ओ-अदा का वक़्त है
अपने लिए भी मौसम-ए-हिज्र-ओ-विसाल है नया
अतहर नफ़ीस
ग़ज़ल
चूँ दिलेराना कोई मुँह पे सिपर को ले कर
शेर-ए-ख़ूँ-ख़्वार को ललकार उठे और बैठे
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
रुक रुक के जो दम निकले है मज़बूह का तेरे
क्या ख़ंजर-ए-खूँ-ख़्वार तिरा तेज़ न था ख़ूब
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
ग़ज़ल
ऐ बुत-ए-खूँ-ख़्वार इक ज़ख़्मी तिरे कूचे में था
सो कई दिन से ख़ुदा जाने वो घायल क्या हुआ
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
है तअज्जुब नोक-ए-मिज़्गाँ से जो ख़ूँ-आलूदा हूँ
ख़ूँ-गिरफ़्ता एक दिल और ख़ंजर-ए-खूँ-ख़्वार सौ
सैय्यद मोहम्मद मीर असर
ग़ज़ल
गली में उस बुत-ए-ख़ूँ-ख़्वार की 'जुरअत' चला तो है
व-लेकिन वाँ से ख़ूँ में देखना अफ़्शान आवेगा
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
चश्म-ए-खूँ-ख़्वार का आग़ोश-ए-मिज़ा में है ये क़ौल
ज़ेब है कहिए अगर शेर-ए-नियस्ताँ मुझ को
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
सीने में दिल-ए-ग़म-ज़दा ख़ूँ हो गया शायद
बे-वज्ह भी होते हैं कहीं अश्क-ए-रवाँ सुर्ख़